Saturday 14 February 2015

अंदाज़’ जरा बदले हैं

     अंदाज़’ जरा बदले हैं 
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       (लक्ष्य अंदाज़”)

अब दूर से गाते हैं , आवाज़ जरा बदले हैं !!
काफिर ने इबादत के ‘अंदाज़’ जरा बदले हैं !!

तुम ढूंढते हो मुझमें, सादा दिली के नगमें,
अब भी वही लिखता हूँ अल्फाज जरा बदले हैं !!

यह जुर्म नहीं है मेरा उन पंछियों से पूछो
जिनको पर नए हैं परवाज़ जरा बदले हैं !!

वो बेकसी की रुत थी यह दीद की गुजारिश
नज्मात वही हैं जानम आगाज़ जरा बदले हैं !!

उन चश्मे-चिरांगा से मैं खुद को जला बैठा ,
झुलसी हुई डाली के अरबाज़ जरा बदले हैं  !!

यह जंगे-इश्काँ है कि,  तकदीर से ठनी है ,
घोड़े नहीं हैं बदले , शाहबाज़ जरा बदले हैं !!

अब दूर से गाते हैं , आवाज़ जरा बदले हैं !!
काफिर ने इबादत के ‘अंदाज़’ जरा बदले हैं !!





 (डॉ.एल.के.शर्मा)

 ……©2015 “ANDAZ-E-BYAAN”Dr.LK SHARMA